ब्रांडेड के नाम पर नकली दवा का कारोबार

लखनऊ (यूपी)। सूबे में नकली दवाओं का कारोबार बड़े स्तर पर फैल गया है। ज्यादा मुनाफे के कारण कई केमिस्ट और दवा व्यापारी इस काले धंधे से जुड़े हुए हैं। फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन इस पर रोक नहीं लगा पा रहा।
अमीनाबाद मेडिसिन मार्केट के एक बड़े व्यापारी ने बताया कि नकली दवाओं की सेल में 90 से 95 फीसद तक का मुनाफा है। काफी कम दाम पर मिलने वाली इन दवाओं की एमआरपी असली दवा की होती है। बड़े मुनाफे के लालच में कुछ केमिस्ट इन्हें बेचने लगते हैं। दवा कारोबारियों के अनुसार प्रदेश में करीब डेढ़ से दो फीसद दवाएं नकली सप्लाई की जा रही हैं। हाल ही में यूपी एफएसडीए ने रूडक़ी (उत्तराखंड) से यूपी में नकली दवाएं सप्लाई करने की फैक्ट्री पकड़ी थी। एफएसडीए को आशंका है कि उन्होंने कई सौ करोड़ की दवाएं यूपी में सप्लाई की थी लेकिन ये दवाएं मरीजों को खिलाई जा चुकी हैं।
कारोबारियों और एफएसडीए के सूत्रों के अनुसार अब तक इसके जितने भी मामले पकड़े गए, उनमें एंटीबायोटिक दवाएं और पेट ठीक रखने से संबंधित दवाएं सर्वाधिक हैं। बता दें कि तीन वर्ष पहले लखनऊ में भी ब्रांडेड कंपनी की जिफी टेबलेट को अलीगंज के मेडिकल स्टोर से पकड़ा गया था। टेबलेट में दवा की मात्रा करीब शून्य थी। एफएसडीए के तत्कालीन ड्रग कंट्रोलर एके मल्होत्रा ने स्वयं अपनी टीम के साथ छापा मारकर मामले का खुलासा किया था, लेकिन लचर कानून के कारण आगे कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। अब तक प्रदेश में जितने भी मामले नकली दवाओं के पकड़े गए, उनमें से ज्यादातर ब्रांडेड दवाओं के नाम पर नकली दवा सप्लाई करने के हैं। एक केमिस्ट ने बताया कि ब्रांडेड कंपनियों के नाम पर दवा जल्दी सप्लाई होती है। यह गलत है कि छोटी कंपनियो के नाम पर घटिया दवा आती हैं। 2016 में भी देशभर में हुए नामी कंपनियों के सैंपल नकली पाए गए थे। इनमें सभी सैंपल अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनियों के थे। इस बारे में ड्रग कंट्रोलर, एफएसडीए एके जैन ने कहा कि नकली दवाओं के संबंध में समय-समय पर जांच की जाती है। मामले पकड़ में आने पर एक्ट के तहत कार्रवाई की जाती है। वहीं, लखनऊ केमिस्ट एसोसिएशन से जुड़े दवा कारोबारी विकास रस्तोगी का कहना है कि लखनऊ दवा कारोबार के लिहाज से बड़ा मार्केट है। यहां से पूरे यूपी में दवाएं सप्लाई की जाती हैं।

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