हरियाणा : उम्र और पॉवर बढ़ाने से कब तक स्वस्थ रह सकेंगे हम !

रोहतक: न खुदा ही मिल रहा, न विसाले सनम, हरियाणा के फूड सेफ्टी और चिकित्सा क्षेत्र की ताजा स्थिति पर यह कहावत सटीक साबित हो रही है। यह अलग बात है कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज इन दोनों स्थितियों से निपटने के लिए कोई मौका नहीं चूक रहे। चिकित्सा क्षेत्र को मजबूती के लिए जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा का अनुसरण कर डॉक्टरों की रिटायरमेंट उम्र 58 से 65 की गई है तो वहीं खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के निर्देशों की तामील करते हुए अगले एक-दो दिनों में सिविल सर्जन की डीओ पावर (डेजीगनेटेड ऑफिसर की पॉवर) को फिर से बढ़ाने का फरमान जारी होने के आसार है।
चूंकि लंबे समय से राज्य में एफएसओ (फूड सेफ्टी अधिकारी) जिलों की संख्या से आधे हैं और उनमें से भी दो-तीन अधिकारी किन्हीं कारणों से सेवा अधिकार प्राप्त नहीं है। पिछली सरकार में भी इस समस्या का स्थायी तरीका तलाशने के बजाय, सिविल सर्जनों को डीओ पॉवर दी गई। सत्ता के करीब दो साल पूरे कर रही भाजपा सरकार भी बीती 4 अक्टूबर को समाप्त डीओ पॉवर को ही आगे बढ़ाकर एक तरह से “उचलती” प्रक्रिया ही अपनाने के मूढ़ में है, बजाए फूड सेफ्टी अधिकारियों की संख्या बढ़ाकर स्थायी समाधान हो।
पिछले तीन महीनों में डेंगू-चिकनगुनिया-मलेरिया के बढ़ते मरीज से स्वास्थ्य सिस्टम की लचरता और डॉक्टरों की कमी अखबारों की हेडलाइन रही है। डॉक्टरों की भर्तियों में भी रुझान फीका नजर आया, जिसे खुद स्वास्थ्य मंत्री ने स्वीकारा। बीमारियों से ही निपटने में सिविल सर्जनों को पसीना बहाना पड़ रहा है। ऐसे में उन पर फूड सैंपलिंग का अतिरिक्त कार्यभार और लाद दिया जाएगा तो फिर शत-प्रतिशत परिणाम कैसे मिलेंगी।
डॉक्टरों को 58 से बढ़ा कर 65 वर्ष तक सेवा अधिकार देकर थोड़ी बहुत राहत की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन जिस तरीके से नई-नई बीमारियां जन्म ले रही है, मरीजों की संख्या सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही है, तो इन “वरिष्ठ चिकित्सकों” के सहारे नैया पार लगना बेहद कठिन है।
इन गंभीर चिंताओं, समस्याओं की छाती पर करोड़ों रुपयों का खर्चे वाला सरकार का स्वर्णजयंती समारोह मिलावट और बीमारियों से त्रस्त राज्य की जनता से न उगले बन रहा है, न निगले।
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