कैंसर, हार्ट की दवा होगी सस्ती

गड़बड़ी
अहमदाबाद। भारतीय बाजार में कैंसर, हार्ट और शुगर जैसे जानलेवा रोगों की सस्ती दवा आने वाली हैं। दवाएं सस्ती होने से इनके मरीजों को काफी राहत मिलेगी। गौरतलब है कि अगले 3 से 5 साल में भारतीय बाजार में दिल की बीमारियों, मधुमेह और कैंसर के इलाज में काम आने वाली कई दवाओं के पेटेंट की अवधि समाप्त होने जा रही है। इसके बाद घरेलू दवा कंपनियां इन दवाओं का जेनेरिक वर्जन पेश करेंगी, इससे इनकी कीमतों में भारी कमी आने की उम्मीद है। दवा उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि कैंसर की दवाओं की कीमत में सबसे ज्यादा कमी आ सकती है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि पेटेंट की अवधि खत्म होने के बाद कितनी कंपनियों की दवाओं को मंजूरी मिलती है। अलबत्ता एपिक्सेबैन जैसे पेटेंट वाले मॉलिक्यूल की सालाना चक्रवृद्धि पिछले 5 साल में 381.9 फीसदी रही है। इसका पेटेंट फाइजर के पास है और वह एलिक्विस ब्रांड से इसे बेचती है। मधुमेह के इलाज में काम आने वाले दवा समूह ग्लिप्टिन्स की बिक्री 40 फीसदी की रफ्तार से हो रही है।
इस श्रेणी में बहुत ज्यादा प्रतिस्प्रद्धा है क्योंकि 160 से अधिक ब्रांड देश के 100 अरब रुपये से अधिक के मधुमेह दवा बाजार पर कब्जा करना चाहते हैं। ग्लिप्टिन्स समूह की चार अहम दवाओं सिटाग्लिप्टिन, लिनाग्लिप्टिन, विल्डाग्लिप्टिन और सेक्साग्लिप्टिन के पेटेंट की अवधि अगले 5 साल में खत्म होने की उम्मीद है। देश में इनका कुल बाजार 7.3 अरब रुपये का है। अभी करीब 20 दवा कंपनियों को इन्हें बनाने का लाइसेंस दिया गया है। देश में ग्लिप्टिन्स का बाजार 25 अरब रुपये का है और बड़ी दवा कंपनियों ने इनकी बिक्री के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ हाथ मिलाया है। जनवरी में सिप्ला ने विल्डाग्लिप्टिन की बिक्री के लिए स्विटजरलैंड की कंपनी नोवार्तिस से हाथ मिलाया। इसी तरह अल्केम ने एवोग्लिप्टिन के लिए दक्षिण कोरिया की कंपनी डोंग ए के साथ करार किया। विल्डाग्लिप्टिन के लिए नोवार्तिस पहले ही यूएसवी फार्मा, एमक्योर और ऐबट के साथ समझौता कर चुकी है। अग्रणी दवा कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि उनकी कंपनी ने विल्डाग्लिप्टिन का जेनेरिक संस्करण तैयार कर लिया है और पेटेंट की अवधि खत्म होते ही इसे भारतीय बाजार में उतार दिया जाएगा।
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