धरती के स्वर्ग (कश्मीर) में नशाखोरी की बढ़ती लत

श्रीनगर

कश्मीर में बंदूक के नशे का खुमार धीरे-धीरे खत्म तो हो रहा है लेकिन कश्मीरी युवकों में अब नशाखोरी एक बड़ी समस्या बनकर उभरती दिखाई दे रही है। नशाखोरी को अपनी समस्याएं दूर करने के तरीके के तौर पर, मानसिक सुकून पाने के विकल्प के तौर पर या खुद को शांत दिखाने के लिए युवक इस विकृति के जाल में फंसते चले जा रहे हैं। घाटी में पिछले साल इस समस्या में 35 से 40 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता यासिर अराफात ने बताया कि घाटी में नशीले पदार्थों के अलावा दवाइयों का भी नशाखोरी के लिए जमकर उपयोग किया जा रहा है। इनमें कोरेक्स, कोडेन, एल्प्राजोलम, अल्प्राक्स, कैनेबिस आदि का प्रमुख रूप से उपयोग किया जा रहा है। तो कश्मीर के सरकारी मनोचिकित्सकीय रोग अस्पताल के मनोवैज्ञानिक डा अरशद की सुने तो नशाखोरी ने पूरे शहर को अपने आगोश में ले लिया है। अरशद कहते थे कि नि:संदेह कश्मीर में नशाखोरी में वृद्धि हुई है। इसके आंकड़े चिंतनीय हैं। इसके जाल में 18 से 35 वर्ष के युवक फंस रहे हैं, जिसके चलते युवकों की मौत की खबरें मिल रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर के चर्चित स्कूल के कक्षा 9 के ज्यादातर विद्यार्थी निकोटीन और सूंघने वाले नशीले तत्वों की गिरफ्त में हैं।
संयुक्त राष्ट्र नशाखोरी नियंत्रण कार्यक्रम की ओर से 2008 में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक कश्मीर में नशाखोरों की संख्या 60 हजार के आसपास थी जो अब बढ़ कर लाखों में हो गई है। सामाजिक कार्यकर्ता अराफात कहते थे कि पिछले ढाई सालों में हमने 598 मरीजों का इलाज किया और हमारे पास लगभग 7500 मरीज आए। दरअसल कश्मीर घाटी अढ़ाई दशकों से जारी सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल और हिंसा की कीमत अपनी दिमागी सेहत खोकर चुका रही है। कश्मीर में नशे के शिकार लोगों का आंकड़ा खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।

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