किडऩी के अभाव में कराह रहे 3,000 मरीज

मुंबई

बदलती जीवनशैली और खानपान के चलते साल दर साल किडनी रोग के मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। लेकिन चाहे डायलेसिस सेंटर की बात करें या फिर किडनी प्रत्यारोपण की, दोनों ही मोर्चों पर हम हारते हुए लग रहे हैं। मुंबई की जोनल ट्रांसप्लांट कॉर्डिनेशन कमेटी (जेडटीसीसी) के आंकड़ों मानें तो मुंबई में 3033 लोगों ने किडनी के लिए रजिस्टर कराया है जबकि सिर्फ 65 से 80 लोगों को ही किडनी मिल पाती है। वहीं डायलेसिस सेंटरों की कमी की बात करें तो पूरे भारत में ही यह संख्या सिर्फ 4,950 है जबकि हर साल 2 लाख से ज्यादा नए ऐसे किडनी के मरीज आ रहे हैं जिन्हें डायलेसिस की जरूरत पड़ती है। देश में किडनी की बीमारियों के शिकार लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ही सरकार ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट के दौरान ‘राष्ट्रीय डायलिसिस सेवा कार्यक्रम’ (एनडीएसपी) की शुरुआत करने की घोषणा की है। इस कार्यक्रम के तहत सभी जिला अस्पतालों में डायलेसिस सेवाएं मुहैया करायी जायेंगी।

2.2 लाख लोगों को डायलेसिस की जरूरत- बजट प्रस्ताव पेश करते हुए देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि भारत में हर साल किडनी की बीमारी के अंतिम चरण में पहुंच चुके 2.2 लाख नये रोगियों की बढ़ोत्तरी हो रही है। इसके परिणाम स्वरूप अतिरिक्त 3.4 करोड़ डायलेसिस सेशन्स की मांग बढ़ गई है। भारत में लगभग 4,950 डायलेसिस केंद्र हैं जो ज्यादातर प्राइवेट सेक्टर के हैं और बड़े शहरों में हैं। इस वजह से केवल आधी मांग की ही पूर्ति हो पाती है। इसके अलावा प्रत्येक डायलेसिस सेशन्स के लिए लगभग 2000 रुपये का खर्च आता है जो प्रति वर्ष 3 लाख रुपये से अधिक बैठता है। साथ ही अधिकतर परिवारों को डायलेसिस सेवाओं के लिए अक्सर लम्बी दूरी तय करके बड़े शहरों में जाना पड़ता है क्योंकि यह सेंटर जिलों और छोटे शहरों में नहीं है। जिनसे यात्राओं पर भारी खर्च होता है।

नैशनल डायलेसिस सर्विस प्रोग्राम के तहत सभी जिला अस्पतालों में डायलेसिस सेवा मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) के जरिये निधियां उपलब्ध करायी जायेंगी। इसके साथ ही एक दूसरी राहत सरकार ने डायलेसिस मशीन और उनके उपकरणों के कुछ हिस्से को पूरी तरह कस्टम ड्यूटी, एक्सासइज ड्यूटी/ सीवीडी और एसएडी से मुक्त कर दिया है।

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