दवा कंपनियों से जुर्माने की वसूली सुस्त

गड़बड़ी
मुंबई। रोगियों से दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) के आधार पर निर्धारित मूल्य से अधिक कीमत वसूलने के लिए दवा कंपनियों पर लगाए गए जुर्माने और बकाये की वसूली के मोर्चे पर राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने अधिक प्रगति नहीं की है। वास्तव में मार्च 1997 से दिसंबर 2018 के बीच एनपीपीए को दवा कंपनियों से कुल बकाये का महज 14 फीसदी रकम वसूलने में ही सफलता मिली है।
औषधि विभाग के तहत काम करने वाले एनपीपीए डीपीसीओ 2013 के प्रावधानों के तहत आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) में शामिल दवाओं के लिए मूल्य निर्धारित करता है। इससे पहले के डीपीसीओ (1995) के तहत 74 बल्क दवाओं को मूल्य नियंत्रण के दायरे में लिया गया था। डीपीसीओ 2013 के तहत मूल्य नियंत्रण का दायरा बढ़ाया गया था।
एनपीपीए के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 1997 और दिसंबर 2018 के बीच कुल 6,248.38 करोड़ रुपये का दावा किया गया लेकिन दवा कंपनियों से महज 868 करोड़ रुपये (13.8 फीसदी) की वसूली हो पाई। हालांकि हाल के वर्षों में दवा कंपनियों से बकाये और जुर्माने की वसूली में तेजी आई है। वर्ष 2014-15 और 2018-19 के बीच (31 दिसंबर 2018 तक) अथवा पिछले पांच वर्षों में 593.05 करोड़ रुपये की वसूली हुई जबकि इस दौरान कुल मांग 2,821.42 करोड़ रुपये की थी। केवल वर्ष 2016-17 में ही मूल्य निर्धारण नियामक ने 302.42 करोड़ रुपये की वसूली की गई जबकि उस दौरान 333.97 करोड़ रुपये के लिए मांग नोटिस जारी किए गए थे। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि एनपीपीए ने दवा कंपनियों को नोटिस जारी किए थे जिसमें कीमत से अधिक वसूली गई रकम, जुर्माने, 15 फीसदी ब्याज और आवश्यक जिंस अधिनियम के तहत कानूनी प्रक्रिया का उल्लेख किया गया था। लेकिन अधिकतर कंपनियों ने उस वसूली को विभिन्न अदालतों में चुनौती दी है।
एनपीपीए की वेबसाइट पर बताया गया है कि मुकदमेबाजी में फंसी रकम करीब 4,084.05 करोड़ रुपये है। दवाओं की निर्धारित कीमत से अधिक वसूले जाने के प्रमुख अदालती मामलों में सिप्ला का भी मामला शामिल है। अक्टूबर 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमुख दवा कंपनियों पर जुर्माना लगाने और डीपीसीओ के जरिये 1,768.51 करोड़ रुपये की मांग संबंधी सरकार की कार्रवाई को सही ठहराया था।
एक प्रमुख औषधि कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पिछले साल एनपीपीए ने ऐसी 436 दवाओं की सूची जारी की थी जिनकी बिक्री डीपीसीओ द्वारा निर्धारित मूल्य से अधिक कीमत पर किए जाने की आशंका जताई गई थी। तय कीमत से अधिक की वसूली के मामले में देश की कई बड़ी दवा कंपनियों के नाम का भी उल्लेख किया गया था। हालांकि सरकार का कहना है कि मुकदमेबाजी के कारण वसूली की रफ्तार धीमी पड़ गई जबकि स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं और रोगियों की वकालत करने वाले समूहों ने अन्य मुद्दों का उल्लेख किया। ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क (एआईडीएएन) की संस्थापक संयोजक मीरा शिवा ने कहा कि एनपीपीए के पास पर्याप्त श्रमबल नहीं है जिससे वह दवा कंपनियों से डीपीसीओ संबंधी वसूली कर सके।
Advertisement