यूं ही एम्स के डायरेक्टर नहीं बने डॉ. रणदीप गुलेरिया

नई दिल्ली: ‘काबिल बनो, कामयाबी झक मारकर आपके पीछे आएगी’, इस डायलॉग से फिल्म 3इडियट बेशक हिट हो गई हो, लेकिन एम्स का डॉयरेक्टर बनना है तो काबिलियत के साथ राजनीतिक ‘जुगाड़’ होना ज्यादा जरूरी है। एम्स के पल्मोनरी मेडिसिन (फेफड़े से संबंधित रोग) के विभागाध्यक्ष डॉ. रणदीप गुलेरिया के अतीत में झांकें तो भाजपा के बड़े-बड़े सूरमा इनकी ‘गोली’ से स्वास्थ्य लाभ लेते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर वित्तमंत्री अरुण जेटली और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जैसे अंग्रिम पंक्ति के भाजपा नेता उनके मरीजों की सूची में शामिल हैं। हालांकि देश के इस सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान के निदेशक बनने का सपना बहुत-से दिग्गज डॉक्टर देख रहे थे, लेकिन यहां भी डॉ. गुलेरिया की ‘गोली’ का असर सब पर हावी रहा।
डॉ. गुलेरिया पल्मोनरी मेडिसिन और क्रिटिकल केयर में सुपर स्पेशियलिटी डिग्री डीएम (डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन) हासिल करने वाले देश के पहले डॉक्टर हैं। सांस की बीमारियों और फेफड़े के कैंसर के इलाज तथा शोध में डॉ. गुलेरिया का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। फेफड़े के कैंसर, अस्थमा आदि बीमारियों पर उन्होंने 400 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित किए हैं। वह सरकार की चिकित्सा से संबंधित कई सलाहकार समितियों के सदस्य भी हैं। उनकी उपलब्धियों के मद्देनजर ही केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। मूलरूप से हिमाचल प्रदेश के रहने वाले डॉ. गुलेरिया को यह अहम पद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्तिसंबंधी समिति (एसीसी) ने सौंपा है। उन्हें पांच साल के लिए एम्स का निदेशक बनाया है।
डॉ. गुलेरिया वर्ष 1992 में बतौर सहायक प्रोफेसर एम्स के मेडिसिन विभाग में शामिल हुए थे। उनके नेतृत्व में ही 2011 में एम्स में पल्मोनरी मेडिसिन का विभाग बना। वह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैज्ञानिक सलाहकार समूह के सदस्य रह चुके हैं। उन्हें 2007 से अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी का सलाहकार बनने का भी गौरव हासिल है। 31 जनवरी को एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्र की सेवानिवृत्ति के बाद से यह पद खाली था।
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