गोदाम में खराब हो गई 50 टन दवाइयां 

रांची। स्वास्थ्य विभाग की भारी लापरवाही सामने आई है। सरकारी अस्पतालों में जरूरतमंद बीपीएल मरीजों को बांटने की बजाए 50 टन दवा गोदाम में ही पड़ी खराब हो गई। अब स्वास्थ्य विभाग इन्हें जलाने की तैयारी में है। इनमें एक्सपायर्ड हो चुकी सर्दी, खांसी, वायरल फीवर, एंटीबायोटिक दवा, स्लाइन और डिस्पोजेबल सीरिंज के सैकड़ों कार्टन नामकुम वेयर हाउस में पड़े हैं। राज्य के निदेशक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं डॉ. राजेंद्र पासवान ने रिम्स निदेशक से पूछा है कि इसे इंसीनरेटर में जलाने में कितना डीजल लगेगा।
गौरतलब है कि राज्य में वर्ष 2007 से 2009 के बीच एनआरएचएम के तहत आयरन की 50 करोड़ गोलियां खरीदी गई। इनकी एक्सपायरी डेट 3-6 माह ही थी। 10 करोड़ का हर्बल मेडिसिन भी खरीदा गया। करीब 130 करोड़़ का दवा घोटाला उजागर होने के बाद जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई जांच में फंसने के डर से सिविल सर्जनों ने बिना जरूरत के जिलों में भेजी दवा लौटा दी। इस घोटाले में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही, स्वास्थ्य सचिव डॉ. प्रदीप कुमार, राज्य आरसीएच पदाधिकारी डॉ. विजय नारायण सिंह समेत कई अधिकारियों और 19 सप्लायरों के खिलाफ जांच चल रही है। जो दवाइयां एक्सपायर्ड हुई हैं उनमें नरवारी मंडूर (आयुर्वेदिक दवा) 6 जिंक टैबलेट, 6 क्लोरोपोट सिरप (एंटीबायोटिक), 6 डीडी किट, 6 गॉज-बैंडेज, 6 डिस्पोजेबल सिरिंज, 6 एलबेंडाजोल, 6 पैरासिटामोल, 6 स्लाइन बोतलें शामिल हैं। इनके अलावा शॉर्ट एक्सपायरी दवा को खपाने की भी तैयारी है। झारखंड मेडिकल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर एंड प्रिक्योरमेंट कॉरपोरेशन ने भी एन-2 व एन-4 स्लाइन भारी मात्रा में खरीद ली। एक्सपायरी डेट मार्च-अप्रैल 2019 है। ये दवाएं जिलों में भेजी जा रही हैं, लेकिन सिविल सर्जन लेने को तैयार नहीं हैं। पीएमसीएच धनबाद ने इसे लौटा दिया है। एनआरएचएम के एमडी केएन झा ने इस बारे में बताया कि ये दवाएं डॉ. प्रदीप कुमार के समय खरीदी गई थी। सीबीआई जांच चल रही थी। कई बार जांच के दौरान दवाएं सीज हो जाती हैं। तकनीकी कारणों से दवाओं की खपत नहीं हो सकी। सीबीआई से अनुमति से ही इसे नष्ट कर रहे हैं। उन्होंने एन-2, एन-4 स्लाइन की शॉर्ट एक्सपायरी होने पर भी खपाए जाने पर कहा कि ज्यादा स्टॉक नहीं है। खपत हो जाएगी। आई-फेपिन टैबलेट की खरीद जरूरत अनुसार होगी।

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