दुनिया के बेहतरीन अस्पतालों की कतार में शामिल मेदांता यानी इलाज में नहीं कोई बराबरी

सर्वश्रेष्ठ हार्ट सर्जन डॉ नरेश त्रेहन के इस अस्पताल की दिल के इलाज पर तो मानो मिल्कियत है

नई दिल्लीः जाने माने हार्ट सर्जन एवं गुड़गांव स्थित मेदांता दी मेडीसिटी के चेयरमैन डा. नरेश त्रेहन नहीं मानते कि अब किसी भी रोग के उत्कृष्ट इलाज के लिए देश के लोगों को कहीं बाहर जाने की कोई जरुरत है। उन्होंने कहा कि मेदांता सुपर स्पेशियैलिटी अस्पताल की स्थापना ही उन्होंने इसीलिए की ताकि विश्वस्तरीय इलाज उन्हें यहीं मिल जाए।

अस्पताल का नाम मेदांता (मेड प्लस अंत) भी उन्होंने यही सोच कर रखा, जिसका मतलब होता है मेडिसिन का अंत यानी अगर मेदांता में किसी मरीज का इलाज नहीं हो सका तो दुनिया में और कहीं भी दूसरी जगह नहीं हो सकता। और अगर आप दिल के मरीज हैं तो फिर मेदांता से ज्यादा सुरक्षित कोई और जगह हो ही नहीं सकती। डा. त्रेहन ने अमेरिका के जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी एवं मायो क्लिनिक की तर्ज पर मेदांता मेडिसिटी स्थापित की है। यहां आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान तो हो हीं रहे हैं, डॉक्टरों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।

मेडिकेयर न्यूज से एक लंबी बातचीत में डॉ. त्रेहन ने मेदांता में दिल के इलाज सहित अन्य रोगों के इलाज की अत्याधुनिक सुविधाओं को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कैसे भारत में हृदय रोगियों की लगातार बढ़ रही संख्या भारी चिंता का विषय है । उन्होंने दिल के इलाज के तरीकों में आए अत्याधुनिक बेहतर बदलाव एवं एक छोटे से चीरे के जरिए रोबॉट द्वारा की जा रही बेहतरीन सर्जरी जैसी सुविधाओं पर प्रकाश डाला।

भारत में दिल के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है । एक आंकड़े के अनुसार, भारत की एक अरब से भी अधिक कुल आबादी में 40 वर्ष से अधिक आयु के करीब 60 करोड़ लोग हैं । इनमें करीब 7 करोड़ लोग हृदय एवं हृदय से संबंधित रोगों के शिकार हैं। ऐसा लगता है कि अगले दशक में यह संख्या बढ़कर 25 करोड़ को भी पार कर जाएगी। बीते 43 वर्षों में शहरी क्षेत्रों में 36 से 64 वर्ष की उम्र के बीच के व्यक्तियों में हृदय रोग 7 से 9 गुने तक बढ़ा है ।  डॉ. त्रेहन कहते हैं- भारत में हृदय रोगियों की संख्या बढ़ने के अनेकों कारण हैं। खान- पान, रहन- सहन और तनाव पूर्ण जीवन शैली हृदय रोग को बढ़ावा दे रही है । स्थिति यह है कि यहां खान पान पर कोई नियंत्रण नहीं है और न ही इसकी कोई निश्चित मात्रा तय है। कुछ बहुत अधिक खा लेते हैं । वहीं दूसरी तरफ वैसे लोगों की बड़ी आबादी है जिन्हें पूरा भोजन नसीब नहीं होता और हृदय को वह खुराक नहीं मिल पाती जो उसे चाहिए। नतीजतन, हृदय को अतिरिक्त दबाव झेलना पड़ता है। इससे हृदय और हृदय से संबंधित बीमारियां होती हैं। डॉ. त्रेहन आगे बताते हैं- यह भी देखने में आया है कि खान पान में देशी घी, हाइड्रोजेनेटेड तेल, नारियल के तेल जैसी गरिष्ठ वसा की खपत बढ़ी है। इससे खून में वसा की मात्रा जरुरत से अधिक बढ़ गई है। इस अनावश्यक वसा ने ही कोरोनरी धमनियों को संकरा कर दिया है। खान पान में चीनी की अधिकता के साथ ही नमक और खटाई वाली चीजों की अधिकता भी हुई है। चीनी से शर्करा बढ़ती है जो मधुमेह का कारण बनता है, जबकि नमक और नमक से बनी चीजों का ज्यादा सेवन रक्तचाप को बढ़ने का कारण बना है। एक जगह ही लंबे समय तक बैठ कर काम करने की आदत तथा शारीरिक व्यायाम न करना भी दिल के रोग को बढ़ाने वाला है। बैठ बैठे काम करने वाले व्यवसाय शहरों के साथ साथ गांवों में भी काफी बढ़ गए हैं । लोगों में चलने फिरने की आदत कम हो गई है। कार्यस्थल पर पैदल जाने की बजाय गाड़ियों से जाने की आदत बढ़ गई है । शारीरिक व्यायाम करने के लिए वक्त नहीं मिल पाता है। धूम्रपान भी हृदय रोग का एक बड़ा कारक है।

हृदय रोग वंशानुगत भी चलता है। दूसरी पीढ़ी कम उम्र में हीं इससे प्रभावित हो जाती है । ऐसे लोगों के रक्त में वसा, कोलेस्ट्रोल, ट्राईग्लिसराइट्स, कम घनत्व के लिपो- प्रोटीन पाए जाते हैं जो धमनियों को तंग बना देते हैं । सांस लेने में कठिनाई, छाती और पेट में दर्द, बेचैनी आदि इसके लक्षणों में शामिल हैं लेकिन एक भ्रांति हृदय के रोग को समय पर पकड़ने में बाधा बनती है। जब किसी व्यक्ति को छाती में दर्द होता है तो उन्हें विश्वास नहीं होता है कि दर्द हृदय रोग के कारण हो रहा है। वे उसे गैस का ही दर्द समझ कर टाल देते हैं। ऐसा व्यक्ति घर वालों से भी यह बात छिपाता है ताकि वे परेशान न हों।

यह दर्द जब सीमा पार कर जाता है तो व्यक्ति को डाक्टर के पास जाने की जरुरत महसूस होती है। चिकित्सक सबसे पहले व्यक्ति का पूरा परीक्षण करता है। रक्तचाप, मधुमेह आदि के साथ ईसीजी परीक्षण किया जाता है । ईसीजी से यह तो पता चल जाता है कि हृदयघात हुआ है या नहीं, लेकिन यह नहीं पता चल पाता है कि आने वाले समय में उनकी क्या स्थिति होगी। कभी कभी ईसीजी की रिपोर्ट सामान्य आने के बावजूद हृदयघात हो जाता है। ईसीजी की अपनी सीमाएं हैं । इसलिए आगे का परीक्षण टीएमटी कराया जाता है । हृदय रोग जब खतरनाक चरण में होता है तब इको और स्ट्रेस थैलियम टेस्ट कराया जाता है। फिर एंजियोग्राफी की बारी आती है। डॉ. त्रेहन की सलाह है कि कि सीने, छाती और शरीर के ऊपरी हिस्सों में होने वाले दर्द को पेट में होने वाले गैस का दर्द समझना खतरे से खाली नहीं है। उसी समय विशेषज्ञ से जांच करानी चाहिए ताकि दर्द के वास्तविक कारण का पता चल जाए। दर्द दिल से जुड़ा पाए जाने पर इलाज के जरिए हृदयाघात को बखूबी रोका जा सकता है।

एक आंकड़े के अनुसार, भारत में हृदय से संबंधित रोगियों में शहरों में 10.9 प्रतिशत पुरुष हैं और 10.2 प्रतिशत महिलाएं हैं। गांवों में 5.5 प्रतिशत पुरुष हृदय रोग से पीड़ित हैं वहीं 6.4 प्रतिशत हृदय से संबंधित रोगों से पीड़ित हैं ।

डा. त्रेहन कहते हैं- हृदय रोग से बचाव सबसे अच्छा रास्ता है। बचाव का अर्थ है पहले ही सावधानियां बरतना। खान पान रहन सहन एवं मानसिक तनाव कम होने चाहिए। 35 वर्ष की उम्र के बाद चीनी के सेवन पर अंकुश जरुरी है ताकि मधुमेह जैसे रोगों से बचा जा सके । नमक का भी सीमित मात्रा में सेवन। यदि हृदयघात से पूर्व पता चल जाए कि कोई व्यक्ति हृदय रोग एवं उससे संबंधित बीमारियों का शिकार है तो ऐसे 95 प्रतिशत मरीजों को विल्कुल ठीक किया जा सकता है। खान पान में चर्बी बढ़ाने वाले तत्व मसलन घी, मक्खन, मांस एवं शराब, चाय , कॉफी पर नियंत्रण जरूरी है । डॉ. त्रेहन की सलाह है कि सुबह हरेक व्यक्ति को 45 मिनट तेज टहलना चाहिए। धूम्रपान एवं शराब के सेवन से परहेज जरुरी है। वे मानते हैं कि नियमित योग एवं ध्यान, संगीत, सिनेमा, मन के तनाव को कम करने में सहायक होते हैं

डा. त्रेहन के अनुसार हदय रोग के इलाज के क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान हो रहे हैं। बीते 5 दशकों में दिल की सर्जरी के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। एंजियोग्राफी से आगे भी जांच की कई आधुनिक तकनीक सामने आई है। स्पायरल सीटी, कार्डिएक एमआरआई, टीईई, 3 – डी इको जैसी तकनीकें हृदय से संबंधित सभी बीमारियों का पता लगाने में सक्षम हैं । दिल की एक-दो नलिकाओं के अवरुद्ध होने की स्थिति में स्टेंट्स से एंजियोप्लास्टी ( बैलूनिंग) की जाती है । कई ब्लाकेज हो तो बाईपास सर्जरी से उपचार होता है ।

बाईपास सर्जरी के मामले में भारत में बड़ी महत्पूर्ण प्रगति हुई है जिसका श्रेय डा. त्रेहन को जाता है। अब पहले की तरह छाती के पास बड़ा चीरा लगाने की जरुरत नहीं होती। अब एक छोटा छेद ही पर्याप्त है। डाक्टरी भाषा में इसे मिनिमली इनवेसिव सर्जरी (एमआईएस) कहते हैं। परंपरागत शल्य चिकित्सा में 10 -12 इंच का चीरा लगाना होता है, लेकिन मिनिमली इनवेसिव सर्जरी में तीन चार इंच का चीरा ही लगाना होता है। मिनिमली इनवेसिव तकनीक से धड़कते हृदय (बीटिंग हार्ट) पर शल्य चिकित्सा की जाती है । डॉ. त्रेहन अब तक 70 हजार से अधिक बाईपास सर्जरी कर चुके हैं । डा. त्रेहन ने ट्रांसमायोकार्डियल लेजर रीवैस्कुलराइजेशन, पोर्ट – एक्सेस वैल्व सर्जरी, रोबोटिक शल्य पद्धति- मिनीथोरैक्टोमी इत्यादि तकनीकों की शुरुआत की है।

आज से लगभग दो दशक पूर्व डा. त्रेहन ने ऐसी कई नान इनवेसिव शल्य चिकित्सा विधियों की खोज की जो हृदय रोगियों के लिए वरदान साबित हुई है। ऐसी एक विधि है पोर्ट एक्सेस सर्जरी । पोर्ट एक्सेस सर्जरी में चीर फाड़ की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है । अस्पताल से जल्द ही छुट्टी मिल जाती है।

भारत में रोबोटिक सर्जरी लाने का श्रेय भी डॉ. त्रेहन को जाता है । देखा गया है कि दिल की सर्जरी के दौरान सर्जन के हाथों में कंपन होता है। लेकिन रोब़ॉट बिना कंपन के सर्जरी करता है।  हृदय सर्जन रोबोट के सहारे जो सर्जरी करते हैं उसमें कोई त्रुटि नहीं होती। एक दो दिन में मरीज को छुट्टी मिल जाती है । ईसप 3000 के नाम से पुकारा जाने वाला रोबोट चिकनी, छोटी से मशीन है । इसके धातु से बने हाथ के सिर पर कैमरा लगा होता है । रोबोटिक सर्जरी के अंतर्गत मरीज के बाएं वक्ष पर दो इंच का चीरा लगाया जाता है ताकि उसकी पसलियों के माध्यम से छोटा सा पांच मिमी का टेलिस्कोप अंदर फिट किया जा सके। रोबोट पर लगा कैमरा इस प्रतिबिंब को पकड़ लेता है और वीडियो स्क्रीन पर प्रसारित कर देता है । रोबोट, हृदय सर्जन के निर्देशन के अनुसार दाएं बाएं चलता है । डा. त्रेहन कहते हैं – रोबोट ने रोगी को सर्जन के कांपते हाथों और संक्रमण से निजात दिलाई है।

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